2020 केे आंदोलन के बाद फिर से क्यों सड़कों पर उतरें किसान? जानिए उनकी क्या हैं मांगे…
Former Protest: किसान एक बार फिर से आंदोलन के लिए दिल्ली की तरफ कूच कर चुके हैं। बड़ी तादाद में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों के किसान इसमें शामिल हुए हैं। किसान मजदूर संघर्ष कमेटी कहती है कि उनके साथ 100 से ज्यादा किसानों के संगठन जुड़े हुए हैं। इसके साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) के साथ 150 संगठन जुड़े हुए हैं। यानी 250 से ज्यादा किसान संगठन इस प्रोटेस्ट में भाग ले रहे हैं और ये पंजाब से कोऑर्डिनेट किया जा रहा है। इन दोनों संगठनों ने दिसंबर 2023 में केंद्र सरकार को कहा था कि 2 साल पहले आपकी सरकार ने हमसे वादे किए थे, लेकिन वो पूरे नहीं हुए और अब हम दिल्ली चलो प्रोटेस्ट करेंगे, ताकि आपको याद दिलाया जा सके।
बता दें कि इससे पहले हुए किसान आंदोलन की मुख्य वजह केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन कृषि कानून थे। हालांकि इस बार किसानों की मांगे दूसरी हैं। आपको बता दें कि इस बार किसान एक या दो नहीं बल्की कुल 12 मांगे लेकर आए है।
किसानों द्वारा मांगी गई मांगों की सूची
1: MSP पर किसानों की फसल खरीदी जाए और कर्ज को माफ किया जाए.
2: लैंड एक्विजिशन एक्ट ऑफ 2013 के तहत अगर जमीन बेची जाती है तो कलेक्टर का जो रेट रहता है, इससे चार गुना ज्यादा मुआवजा दिया जाए.
3: इसके साथ अक्टूबर 2021 में लखीमपुर खीरी में किसानों के ऊपर गाड़ी चढ़ाने वाले आरोपियों को सजा दी जाए.
4: वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन से भारत निकल जाए और जितने भी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किए हैं, उनको रोक दिया जाए.
5: 60 साल से ज्यादा उम्र के किसानों के लिए सरकार प्रतिमाह 10 हज़ार रूपय की पेंशन तय करें.
6: 2020 में दिल्ली में हुए आंदोलन के दौरान मृत किसानों को मुआवजा दिया जाए और उनके परिवार में से किसी भी एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाए.
7: इलेक्ट्रिसिटी अमेंडमेंट बिल 2020 को खत्म किया जाए.
8: नरेगा के तहत 1 साल के अंदर 100 दिनों की गारंटी को 200 दिन किया जाए और एक दिन की मजदूरी को ₹700 किया जाए. इसके साथ ही इस स्कीम को किसानों से जोड़ा जाए.
9: नकली बीज, पेस्टिसाइड और फर्टिलाइजर बनामे वाली कंहनियों के ऊपर जुर्माना लगाया जाए और कड़ी कार्यवाही की जाए.
10: सरकार बीज क्वालिटी को बेहतर करें.
11:मिर्च और हल्दी समेत अन्य मसालों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए.
12: कंपनियों को आदिवासियों की जमीन अधिग्रहित करने से रोका जाए. जल, जंगल और जमीन पर मूलवासियों का अधिकार सुनिश्चित किया जाए.
ये तो थी किसानों की साल 2024 की मांगे… लेकिन बता दें कि इससे पहले साल 2020 में किसानों ने जो प्रर्दशन किया था उसकी मांगे अलग थी। दरअसल, साल 2020 में संसद से तीन कृषि कानून पारित किए गए थे। फिर पंजाब, हरियाणा समेत देशभर के किसान संगठनों ने इन तीनों कानूनों का विरोध किया था। साथ ही एमएसपी की कानूनी गारंटी, आंदोलन की प्रमुख मांग थी। तब जाकर नवंबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा कर दी। इसके बाद दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे किसानों ने अपना आंदोलन खत्म कर दिया।
फसलों के विविधीकरण पर सुझाव मांगा
वही, जुलाई 2022 में केंद्रीय कृषि और किसान मंत्रालय ने एमएसपी को लेकर एक समिति नियुक्त की। इस समिति को तीन बिंदुओं- एमएसपी, प्राकृतिक खेती और फसलों के विविधीकरण पर सुझाव देने को कहा गया। 26 सदस्यों वाली इस समिति के अध्यक्ष पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल को बनाया गया। और तो और इसमें केंद्र सरकारों, राज्य सरकारों, किसानों, कृषि वैज्ञानिकों और कृषि अर्थशास्त्रियों के आकलन शामिल किए गए। हालांकि, समिति के पास कोई समय सीमा नहीं है। जी हां, ये समिति अपनी रिपोर्ट कब जमा करेगी इसकी कोई समय सीमा तय नहीं की गई है।
16 फरवरी राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आह्नान
इसके अलावा आपको बता दें कि ऑल इंडिया किसान सभा ने भी किसानों के आंदोलन से फिलहाल दूरी बनाई हुई है, जबकि संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 16 फरवरी 2024 को राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आह्नान किया गया है, जिसमें तमाम किसान और मजदूर पूरे दिन हड़ताल और काम बंद करेंगे। इतना ही नहीं, दोपहर 12 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों का घेराव किया जाएगा और हाईवे बंद किए जाएंगे. क्योंकि ऑल इंडिया किसान सभा का कहना है कि सरकार ने स्वामीनाथन को भारत रत्न दे दिया, लेकिन उनकी सिफारिश नहीं मानी गई हैं।
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