Sam Bahadur: सैम बहादुर में चला विक्की का जादू, सैम मानेकशॉ के किरदार में जीता देश का दिल
Sam Bahadur: विक्की कौशल की फिल्म सैम बहादुर बड़े पर्दे पर रिलीज हो चुकी है। विक्की कौशल सैम मानेकशॉ बनकर आए हैं। देश के पहले फील्ड मार्शल बनने वाले मानेकशॉ की कहानी, एक देश की भी कहानी है। मेघना गुलजार की सैम बहादुर’ का ट्रेलर तो बहुत अच्छा साबित हुआ। फिल्म की बात करें तो 2:30 घंटे का फिल्म आपको पकाएगी नहीं बल्की आपके टिकट के पैसे बसूल होंगे।
डायरेक्टर मेघना गुलजार
देश की आजादी से लेकर, पाकिस्तान के साथ जंग जीतकर बांग्लादेश के निर्माण में तक, भारत की कई बड़ी घटनाएं सैम के जीवन से होकर गुजरीं। मगर इन घटनाओं को दिखाने में मेघना तीखे सिनेमाई मसालों का इस्तेमाल नहीं करतीं। वो सैम की शख्सियत से ही रंग निकालकर इन घटनाओं को पेंट करती हैं। और 7 गोलियों से छिदा बदन लेकर लहुलूहान पड़ा जो शख्स कहे- ‘कुछ नहीं, एक खच्चर ने लात मार दी’; उसकी टक्कर का हीरोइज्म वाला मसाला सिनेमा के बाजार में भी कहां उपलब्ध है!
बैलेंस मूवी
एक और चीज जो मेघना ने बहुत बेहतरीन की है, वो है घटनाओं को उनके बैलेंस पर टिकाए रखना, उन्हें अपने हीरो के पक्ष में न झुकाना ‘सैम बहादुर’ में कई मौकों पर मानेकशॉ नेताओं के बीच हैं। लेकिन मेघना ये नहीं करतीं कि अपने सोल्जर को चमकाने के लिए वो नेताओं के किरदार भद्दे कर दें। न ही वो लड़ाई में दूसरी तरफ खड़े सैनिक को एक सख्त नेगेटिव अंदाज में दिखाती हैं।
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फिल्म की कहानी
फिल्म में हमें दिखता है कि कैसे एक भारत के फौजी अब दो देशों की सेनाओं में बंट चुके हैं। मेघना इस इमोशन को मेंटेन रखती हैं कि कल तक बैरक में साथ बैठकर किस्से सुना रहे दो साथी जब सरहद की दो तरफ खड़े मिलेंगे तो उनका दिल क्या कह रहा होगा। लेकिन फिर भी उन्हें चट्टान की तरह डटे रहना होगा। न कि वो एक दूसरे को देखते ही गालियां निकालने लगेंगे. इस तरह के सस्ते और नॉन-क्रिएटिव पैंतरों से बच निकलना ‘सैम बहादुर’ की सबसे बड़ी कामयाबी है. अच्छी सिनेमेटोग्राफी, उस दौर के हिसाब से सटीक लगता प्रोडक्शन डिज़ाइन 60-70 साल पुरानी कहानी में दिखती एक ऑथेंटिक फीलिंग और अच्छी लाइटिंग जैसी टेक्निकल चीजें फ़िल्म में मजबूत हैं।
सैम के किरदार को उसके सच्चे रंगों में उतारने का कमाल जिस तरह विक्की कौशल ने किया है, वो आपको स्क्रीन से चिपकाए रखता है। विक्की कौशल अब अपने टैलेंट को तराशने के उस लेवल तक पहुंच चुके हैं, जहां शायद ही कभी उनसे कोई गलती होती नजर आए. ‘सैम मानेकशॉ’ भी उनके इसी टैलेंट का नया शाहकार है। फिल्म में, कहानी में, स्क्रीनप्ले में गलतियां नजर आ सकती हैं, मगर विक्की के काम में चूक की कोई गुंजाइश नहीं है।
‘सैम बहादुर’ ढाई घंटे लंबी फिल्म है, जो ज्यादातर समय आपको नहीं महसूस होता। फर्स्ट हाफ में फिल्म थोड़ी ज्यादा तेज चलती है लेकिन शायद इसलिए कि उसमें सैम की लाइफ के कई हिस्से तेजी से कवर होते हैं। इंटरवल के बाद फिल्म जैसे ही थोड़ी स्लो होती लगती है वहां ‘बढ़ते चलो’ गाना आ जाता है. भारतीय सेना की अलग-अलग रेजिमेंट्स के युद्धघोष इस गाने में सुनाई देते हैं और रोंगटे खड़े कर देते हैं। बॉलीवुड के लेजेंड गीतकार गुलजार ने इस बार गीत ऐसा लिखा है कि पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं. बॉलीवुड के लेजेंड गीतकार गुलजार ने इस बार गीत ऐसा लिखा है कि पढ़कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
अंत में जाकर फिल्म का मोमेंटम थोड़ा धीमा जरूर पड़ जाता है. क्लाइमेक्स भी थोड़ा और एनर्जी भरा हो सकता था। फिल्म में एक छोटी सी कमी यह भी है कि सैम के सेना से पहले वाले दिनों को थोड़ा और दिखाया जा सकता था। उनके लड़कपन, कॉलेज के दिनों से अगर उनके मजेदार-लाजवाब अंदाज की थोड़ी झलक फिल्म में होती तो और मजा आता। मगर अभी भी ‘सैम बहादुर’ टिकट पर आपका खर्च करवाने का दम रखती है। मेघना गुलजार और विक्की कौशल का कॉम्बो आपको ढाई घंटे में एक हीरो की कहानी बड़े मजेदार अंदाज में दिखाते हैं।
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