May 12, 2024

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कौन हैं खाटू श्याम और कैसे बने भगवान, जानें बाबा के बारे में सभी जानकारी?

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Happy Birthday Khatu Shyam: आज देवउठान एकादशी का दिन है और ये दिन खाटू श्याम के भक्तों के लिए बेहद महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि आज के दिन ही खाटू श्याम का जन्मदिन मनाया जाता है। राजस्थान के सीकर जिले में खाटू श्याम जी का सुप्रसिद्ध मंदिर है। वैसे तो खाटू श्याम बाबा के भक्तों की कोई गिनती नहीं लेकिन कहा जाता है कि खाटू श्याम के भक्तों में खासकर वैश्य, मारवाड़ी जैसे व्यवसायी वर्ग अधिक संख्या में है।

कौन हैं खाटू श्याम?

बता दें कि खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है। महाभारत की एक कहानी के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफनाया गया था इसीलिए बर्बरीक का नाम खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वर्तमान में खाटूनगर सीकर जिले के नाम से जाना जाता है। खाटू श्याम बाबा, श्री कृष्ण भगवान के अवतार के रूप में माने जाते हैं। श्याम बाबा घटोत्कच और नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं। पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा बर्बरीक के दादा दादी थे। कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर जैसे थे जिसके कारण उनका नाम बर्बरीक रखा गया।

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कौन थे बर्बरीक?

बर्बरीक बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे। बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखकर निपुणता प्राप्त कर ली थी। बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिसके आशीर्वाद के रूप में भगवान शिव ने बर्बरीक को 3 चमत्कारी बाण दिए थे। इसी कारणवश बर्बरीक को तीन बाणधारी के रूप में भी जाना जाता है। भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ थे। महाभारत के समय जब कौरवों और पांडवों का युद्ध होने की सूचना बर्बरीक को मिली थी तो उन्होंने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया।

Here's The Story Of Barbarik- The Most Powerful Warrior In Mahabharata

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तीन तीरों से किया जा सकता है सम्पूर्ण जगत का विनाश

बर्बरीक ने अपनी माँ का आशीर्वाद लिया और उन्हें हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर निकल पड़े। इसी वचन के कारण हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा यह बात प्रसिद्ध हुई। जब बर्बरीक जा रहे थे तो उन्हें मार्ग में एक ब्राह्मण मिला। यह ब्राह्मण कोई और नहीं बल्कि भगवान श्री कृष्ण थे जोकि बर्बरीक की परीक्षा लेना चाहते थे। ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया कि वो मात्र 3 बाण लेकर लड़ने को जा रहा है? मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है। तब बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम है और इसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा। अतः इन तीनों तीरों से तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है।

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श्रीकृष्ण ने ली परीक्षा

तब ब्राह्मण ने बर्बरीक से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए। बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया। उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा। असल में कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा दिया था। बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है। बर्बरीक बोले – हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लो, नहीं तो ये आपके पैर को भेद देगा तो श्री कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए।

Why did Krishna get Barbarik beheaded, even when they are on the weaker  side on the first day of war? - Quora

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हारी हुई टीम को जिताने का लिया था फैसला

श्रीकृष्ण ने पूंछा कि बर्बरीक किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे। बर्बरीक बोले कि उन्होंने लड़ने के लिए कोई पक्ष निर्धारित नहीं किया है, वो तो बस अपने वचन अनुसार हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे। श्री कृष्ण ये सुनकर विचारमग्न हो गये क्योंकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव जानते थे। कौरवों ने योजना बनाई थी कि युद्ध के पहले दिन वो कम सेना के साथ युद्ध करेंगे। इससे कौरव युद्ध में हराने लगेंगे, जिसके कारण बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ने आ जायेंगे। अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो उनके चमत्कारी बाण पांडवों का नाश कर देंगे।

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ब्राह्मण ने मांगा दान

कौरवों की योजना विफल करने के लिए ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा। बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया। अब ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए। इस अनोखे दान की मांग सुनकर बर्बरीक आश्चर्यचकित हुए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है। बर्बरीक ने प्रार्थना की कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों तब भगवान श्री कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए। बर्बरीक बोले कि हे देव मैं अपना शीश देने के लिए बचनबद्ध हूँ लेकिन मैं ये युद्ध अपनी आँखों से देखना चाहता हूं. श्री कृष्ण ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया। बर्बरीक ने अपना शीश काटकर कृष्ण को दे दिया। श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया, जहाँ से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें। इसके बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया।

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किसे मिलना चाहिए जीत का श्रेय?

महाभारत का युद्ध पूरे 18 दिन चला। युद्ध में पांडवों की जीत हुई। युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों में ये विमर्श चल रहा था कि जीत का श्रेय किसको जाता है। इस बारे में श्रीकृष्ण से पूछा गया कि आखिर इस युद्ध को जीतने का श्रेय किसको जाता है? श्रीकृष्ण बोले कि इस युद्ध का श्रेय केवल बर्बरीक ही बता सकते हैं क्योंकि उन्होंने ये पूरा युद्ध स्वयं अपनी आंखों से देखा है।

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श्रीकृष्ण की युद्धनीति से जीते युद्ध

जब बर्बरीक से इसके बारे में पूछा गया तो वो बोले कि इस जीत का श्रेय सिर्फ श्रीकृष्ण को जाता है क्योंकि ये जीत श्रीकृष्ण की युद्धनीति के कारण हुई है। इस जीत के पीछे श्रीकृष्ण की ही माया थी। इन वचनों को सुनकर बर्बरीक पर फूलों की वर्षा हुई और देवतागण उनका गुणगान करने लगे। श्रीकृष्ण बर्बरीक की महानता से प्रसन्न हुए और उन्होंने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया कि “हे वीर! बर्बरीक आप महान हैं। मेरे आशीर्वाद स्वरुप आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होंगे। कलियुग में आप कृष्णअवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करेंगे। श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से आज के समय में भगवान श्रीखाटू श्याम जी को काफी ज्यादा पूजा जाता है।

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