May 3, 2024

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला संदेशखाली मामले पर नहीं होगी सुनवाई, खटखटाये हाईकोर्ट का दरवाजा

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Sandeshkhali-violence

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Supreme Court: संदेशखाली मामले को लेकर बड़ी बात सामने आ रही है। जहां एक तरफ बीजेपी ने इस मामले में पहल करते हुए अपनी तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन अफसोस वहीं अब इस मामले में बीजेपी के हाथों सिर्फ निराशा लगी है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के संदेशखाली मामले पर सुनवाई करने से इनकार किया और हाईकोर्ट में अर्जा दाखिल की बात कही है।

हाईकोर्ट से करें मांग

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि ”इस मामले पर कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है।” सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि ”आप ये मांग हाईकोर्ट से करें। यहां मांग क्यों कर रहे हैं? आपने रिट याचिका क्यों नही दायर की? कोलकाता हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया तो है। ऐसे में यह कोर्ट मामले में दखल देते हुए सुनवाई क्यों करें?”

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पश्चिम बंगाल के बाहर ट्रांसफर करें

इस मामले में याचिकाकर्ता वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने संदेशखाली घटना के बारे में अदालत में कहा कि ”ज्यादातर पीड़ित अनुसूचित जाति वर्ग के हैं।” जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि ”कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया है तो आप वहां जाकर सीबीआई जांच की मांग भी कर सकते हैं।”

अलख आलोक श्रीवास्तव ने इस पर कहा कि ”मैं मामले का ट्रांसफर पश्चिम बंगाल के बाहर करने की भी गुहार लगा रहा हूं। वहां की स्थिति बहुत खराब है। इस लिए मामले को पश्चिम बंगाल के बाहर ट्रांसफर किया जाए।”

संदेशखाली मुद्दा मणिपुर जैसा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप हाईकोर्ट जाए, जब कोर्ट ने संज्ञान लिया है तो आपको वहां जाना चाहिए। स्थानीय कोर्ट बेहतर है।
हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के बाद क्या हुआ? इस पर वकील अलख ने कहा कि ”हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के एक दिन बाद मुख्यमंत्री ने बयान दिया था और कहा था की वहां कोई रेप नही हुआ हैं। ये बिलकुल मणिपुर की तरह का मामला है।”

मणिपुर की तुलना संदेशखाली से करना गलत

इस दलील पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ”इस मामले की तुलना मणिपुर मामले से न करें। हम आपको ये इजाजत देंगे की आप हाईकोर्ट की सुनवाई में शामिल हो और अर्जी दाखिल करें।”

हाईकोर्ट के पास पावर, एसआईटी गठन का

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि ” हाईकोर्ट के पास भी एसआईटी गठित करने का अधिकार है। ऐसे में हाईकोर्ट को ही तय करने दीजिए। हाईकोर्ट के पास पावर है कि वो एसआईटी का गठन करे।”

 

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