रामपुर तिराह कांड, उत्तराखंड बनाने की मांग और एक खूनी दास्तान
उत्तराखंड की मांग और एक खूनी दास्तान। 9 नवंबर उत्तराखंड के लिए बहुत खास दिन है इसी दिन राज्य की स्थापना हुई थी। लेकिन इसी दिन उत्तरप्रदेश से एक अलग राज्य उत्तराखंड बनने का रास्ता कई लोगों की जिंदगी और महिलाओं की इज्जत से होकर गुजरा था, जिसे लोग रामपुर तिराहा कांड “तारीख 2 अक्टूबर,साल 1994,” के नाम से जानते हैं।
बाड़ी-मडुआ खाएंगे उत्तराखंड बनाएंगे’, इसी नारे के साथ उत्तरप्रदेश से एक अलग राज्य उत्तराखंड बनाने की मांग उठी थी। ये नारा हर आंदोलनकारी की जुबान पर था। कई नेताओं को पहाड़ी लोगों ने वोट नहीं दिया था,वो उनसे खफा थे खफा वो लोग भी थे जिन्हें अलग राज्य नहीं मिल रहा था। लिहाजा देखते ही देखते इस मांग ने जोर पकड़ लिया।
1 अक्टूबर 1994 का दिन था, और उसी दिन आंदोलनकारियों का दल अलग उत्तराखंड की मांग लिए नारेबाजी करते हुए आगे बढ़ गया पहाड़ी इलाकों से 24 बसों में सवार होकर कुछ आंदोलनकारी दिल्ली की तरफ रवाना हो गए। जिन्हें पहले रुड़की और फिर नारसन बॉर्डर पर रोका गया। लेकिन आंदोलनकारी नहीं रुके और फिर आगे बढ़ गए उन्हें रोकने के पुलिस और प्रशासन के कई प्रयास विफल हो रहे थे। जिसके बाद उन्हें फिर रामपुर तिराहे पर रोकने का फैसला किया गया।
रामपुर तिराहे पर जो होने वाला था प्रदर्शनकारियों को उसका बिल्कुल अंदाजा नहीं था सब कुछ कल्पना से परे घटित हुआ। तिराहे पर प्रदर्शनकारी जैसे ही पहुंचे तो वहां पुलिस से उनकी कहासुनी हो गई और देखते ही देखते ये कहासुनी तेज नारेबाजी और पथराव में बदल गई। बताया गया था कि पत्थर प्रदर्शनकारियों की ओर से फेंके जा रहे थे। जिसमें जीएम अनंत कुमार भी घायल हो गए थे। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए लाठीचार्ज किया और लगभग ढाई सौ प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया। झड़प बहुत तेज हुई थी कई महिलाओं के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म भी हुआ, लूटपाट की घटनाएं भी घटीं, जिनमें पुलिस को भी आरोपी बताया गया।
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फिर जब मामले की खबर सब तरफ फैली तो 40 बसों से प्रदर्शनकारी रामपुर तिराहे पर पहुंच गए। इसके बाद फिर झड़प और तेज हो गई दूसरा दिन यानी 2 अक्टूबर को मामला ज्यादा संघर्षपूर्ण स्थिति में पहुंच चुका था। लोगों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने 24 राउंड फायरिंग की इस फायरिंग में 7 लोगों की जान चली गई और लगभग डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए।
इस घटना ने सभी को अंदर तक झकझोर दिया था। मुज्फ्फरपुर में लगी इस आग की चिंगारी पूरे देश में फैल चुकी थी। हर कोई इस घटना को जानकर हैरान था 6 सालों तक उत्तराखंड बनाने की मांग लिए आंदोलन चला और आखिरकार 9 नवंबर साल 2000 को उत्तरप्रदेश से एक अलग राज्य का उदय हुआ, जिसे अब उत्तराखंड के नाम से जाना जाता है आज उत्तराखंड को बने 23 साल का वक्त बीत चुका है, लेकिन रामपुर तिराहे पर हुई वो घटना लोगों के दिलों को अब भी झकझोर देती है।
इस रामपुर तिराहा कांड मामले में कई पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज हुई जिसके दो साल बाद यानी 1995 में इलाहबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई जांच के आदेश दिए। इस कांड में 2 दर्जन से अधिक पुलिसवालों पर दुष्कर्म, डकैती, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ जैसे गंभीर मामले दर्ज हुए थे। वहीं पुलिस पर भीड़ के ऊपर फायरिंग करने का भी आरोप था। इसके अलावा सीबीआई के पास भी सैकड़ों शिकायतें दर्ज करवाई गईं। साल 2003 में इस मामले में तत्कालीन डीएम को भी नामजद किया गया। मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक पुलिसकर्मी को सात साल जबकि दो अन्य पुलिसकर्मियों को 2-2 साल की जेल की सजा सुनाई वहीं 2007 में तत्कालीन एसपी को भी सीबीआई कोर्ट ने बरी कर दिया हालांकि रामपुर तिराहा कांड के कई मामले अब भी न्यायालय में चल रहे हैं। जिनमें पीड़ितों को अब भी इंसाफ का इंतजार है।
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