जानें कौन हैं सैम बहादुर जिनपर बनी फिल्म? 7 गोलियां खाने के बाद भी बच गए थे ज़िंदा

Manekshaw
13 अक्टूबर को विक्की कौशल की आगामी फिल्म सैम बहादुर का ट्रेलर रिलीज हुआ था। “सैम बहादुर” नामक फिल्म एक प्रसिद्ध भारतीय सैन्य अधिकारी सैम मानेकशॉ के जीवन पर आधारित है। अपने असाधारण नेतृत्व कौशल और रणनीतिक प्रतिभा के लिए प्रचलित मानेकशॉ ने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सैम मानेकशॉ कौन थे?
सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को हुआ था। उनका निधन 27 जून, 2008 को हुआ। उन्हें सैम बहादुर (“सैम द ब्रेव”) के नाम से भी जाना जाता है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में और शेरवुड कॉलेज नैनीताल में हुई थी। मानेकशॉ भारतीय सैन्य अकादमी के लिए चुने जाने वाले 40 कैडेटों के पहले बैच के थे और उन्हें 4 फरवरी 1934 को 12 एफएफ राइफल्स में कमीशन किया गया था। सैम मानेकशॉ का पूरा नाम होरमुजजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ था, लेकिन बचपन से ही निडर और बहादुरी की वजह से सैम मानेकशॉ को उनके दोस्त, उनकी पत्नी, उनके अफसर या तो उन्हें सैम कह कर पुकारते थे या “सैम बहादुर”।
डॉक्टर बनना चाहते थे सैम
अमृतसर में पले सैम अपने पापा की तरह डॉक्टर बनना चाहता थे। इसके लिए वो लंदन जाना चाहता थे, क्योंकि उनके दो भाई पहले से ही वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। पापा ने कहा- तुम अभी छोटे हो। इस बात से गुस्सा होकर सैम ने इंडियन मिलिट्री में शामिल होने के लिए फॉर्म भरा और सेलेक्ट हो गए।
इंदिरा गांधी से की थी बगावत
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जब साल 1971 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से लड़ाई के लिए तैयार रहने पर सवाल किया था। इस बात के जवाब में सैम मानेकशॉ ने कहा था, ‘आई एम ऑलवेज रेडी, स्वीटी’। 1971 की लड़ाई में इंदिरा गांधी चाहती थीं कि वह मार्च में ही पाकिस्तान पर चढ़ाई कर दें, लेकिन सैम ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, क्योंकि भारतीय सेना हमले के लिए तैयार नहीं थी। इंदिरा गांधी इससे नाराज भी हुईं थीं। मानेकशॉ ने पूछा कि अगर आप युद्ध जीतना चाहती हैं तो मुझे छह महीने का समय दीजिए। मैं गारंटी देता हूं कि जीत हमारी ही होगी।
छोटी-सी उम्र में ही हुए युद्ध में शामिल

3 दिसंबर को फाइनली वॉर शुरू हुआ। सैम ने पाकिस्तानी सेना को सरेंडर करने को कहा, लेकिन पाकिस्तान नहीं माना। 14 दिसंबर, 1971 को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला कर दिया। इसके बाद 16 दिसंबर को ईस्ट पाकिस्तान आजाद होकर ‘बांग्लादेश’ बन गया। इसी जंग में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण भी किया। सैम बहादुर 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष और पहले भारतीय थे। उन्हें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत की जीत का सूत्रधार माना जाता है। अपने पूरे सैन्य करियर में सैम मानेकशॉ ने कई कठिनाइयों का सामना किया। छोटी-सी उम्र में ही उन्हें युद्ध में शामिल होना पड़ा था।
द्वितीय विश्व युद्ध में लगी थीं 7 गोलियां
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैम के शरीर में 7 गोलियां लगी थीं। सबने उनके बचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी, लेकिन डॉक्टरों ने समय रहते सारी गोलियां निकाल दीं और उनकी जान बच गई। युद्ध के बाद उन्होंने भारतीय सेना और पाकिस्तानी सेना के एकीकरण में अहम भूमिका निभाई।
इंडिया के पहले फील्ड मार्शल थे सैम मानेकशॉ
सैम मानेकशॉ के 4 दशक के सैन्य करियर में 5 युद्ध शामिल हैं। सैम मानेकशॉ इंडिया के पहले फील्ड मार्शल थे। सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के पहले 5 स्टार जनरल और पहले ऑफिसर जिन्हें फील्ड मार्शल की रैंक पर प्रमोट किया गया था। इंतिहास में इंडियन आर्मी का शायद ही कोई ऐसा जनरल हो, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर इतनी लोकप्रियता कभी हासिल की हो, जितनी सैम को मिली थी। उनके निधन को 14 साल हो गए हैं, लेकिन आज तक उनकी बहादुरी के किस्से और उनके जोक्स लोगों के बीच चर्चा का विषय बने रहते हैं।
सैन्य करियर में मिले कई सम्मान
सैन मानेकशॉ को अपने सैन्य करियर के दौरान कई सम्मान प्राप्त हुए थे। 59 साल की उम्र में उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया था। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय जनरल थे। 1972 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। एक साल बाद 1973 में वह सेना प्रमुख के पद से रिटायर हो गए थे। सेवानिवृत्ति के बाद वह तमिलनाडु के वेलिंग्टन चले गए। वेलिंग्टन में ही साल 2008 में उनका निधन हो गया था।