Uttarkashi Tunnel: PM Modi ने 17 दिन बाद बाहर आए मजदूरों से की बात, सीएम धामी ने कही बड़ी बात
Uttarkashi Tunnel: 17 दिन बाद सभी 41 मजदूरों को उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग से सकुशल बाहर निकाल लिया गया। निकाले गए मजदूरों से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मुलाकात की। इसके बाद पीएम मोदी ने भी सभी मजदूरों से बातचीत की। इस दौरान मजदूरों ने बताया कि उन्होंने ये 17 दिन का समय सुरंग के अंदर कैसे काटा। इस दौरान मजदूरों ने बताया कि कैसे वे लोग एकसाथ रहे। उन्होंने एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ा। किसी को भी दिक्कत होती थी तो सब साथ खड़े रहते थे। सुबह को व्यायाम करना और शाम को खाना खाकर सुरंग के अंदर ही टहलना उन्होंने अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया था।
1-1 लाख रुपए और 20 दिन की छुट्टी
बता दें कि ये सभी मजदूर नेशनल हाईवे इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के लिए काम रहे थे। एजेंसी ने सभी मजदूरों को 15 से 20 दिनों की छुट्टी दे दी है और घर जाने की अनुमति भी दे दी है। उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने सभी मजदूरों को 1-1 लाख रुपए आर्थिक मदद देने और सभी मजदूरों को 20 दिनों की पेड छुट्टी दिलाने का आश्वासन दिया है।
निर्माणाधीन सुरंगों की होगी समीक्षा
सीएम धामी ने मंदिर के मुहाने पर बौखनाग मंदिर का पुनर्निर्माण कराने की भी बात की है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि पहाड़ी राज्य में निर्माणाधीन सुरंगों की समीक्षा की जाएगी। इसके साथ ही केंद3 सरकार ने भी निर्माणाधीन सुरंगों का सुरक्षा ऑडिट कराने का फैसला किया है। इसी के साथ राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने रैट माइनर्स को भी धन्यवाद दिया है।
क्या है पूरा मामला?
बता दें कि 12 नवंबर सुबह 5.30 बजे सिलक्यारा सुरंग धंस गई थी जिसके बाद उसमें 41 मजदूर फंस गए थे। इन्हें बाहर निकालने के लिए कई अभियान चलाए गए लेकिन बार-बार नाकामयाबी ही हाथ लग सकी लेकिन सभी ने हार नहीं मानी। रेस्क्यू के लिए अमेरिका से ऑगर मशीन मंगाई गई। ऑगर मशीन का इस्तेमाल किया गया, लेकिन इसके टूट जाने के बाद रैट माइनर्स ने बचे हुए मलबे को खोदकर बाहर निकाला। इसके बाद मंगलवार की शाम को सभी मजदूरों को रैट माइनर्स की मदद से सकुशल बाहर निकाल लिया गया।
रैट होल खनन छोटे-छोटे गड्ढे खोदकर कोयला निकालने की एक विधि है। रैट माइनर्स कोयला निकालने के लिए सुरंगों में सैकड़ों फीट गोता लगाते हैं। इन खदानों का निर्माण इंसानो द्वारा बनाए गए उपकरणों का उपयोग करके किया जाता है, और अक्सर दुर्घटनाएँ होती हैं, जिनमें से ज्यादा तर रिपोर्ट दर्ज ही नहीं कराई जाती है।असुरक्षित होने के कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2014 में मेघालय में रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
क्यों लगा प्रतिबंद
एक याचिका के आधार पर आरोप लगाया गया है कि खानों से निकलने वाला अम्लीय नदियों को दूषित कर रहा था। मेघालय के कोयले में सल्फर की मात्रा अधिक होने के कारण ये खदानें सल्फ्यूरिक एसिड छोड़ती हैं। कुछ स्थानों पर, एसिड डिस्चार्ज इतना खराब है कि नदियों को अम्लीय बना दिया है, जलीय जीवन को नुकसान पहुँचा रहा है। खनन क्षेत्रों में और उसके आस-पास, पूरी सड़क का उपयोग कोयले के जमाव के लिए किया जाता है। यह मिट्टी, पानी और वायु प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण कारण है। क्षेत्र में ट्रकों और अन्य वाहनों की ऑफ-रोड आवाजाही से पर्यावरण को और नुकसान होता है।
रैट-होल खनन के कारण बरसात के मौसम में खनन क्षेत्रों में पानी भर जाता है, जिससे कई कर्मचारियों की दम घुटने और भूख से मौत हो जाती है। लेकिन फिर भी प्रथा बंद नहीं हुई। तकनीक पर प्रतिबंद लगा दिया गया। क्योंकि यह श्रमिकों के लिए जोखिम भरा था और वैज्ञानिक कठोरता में कमी थी। लेकिन राज्य सरकार अवैध खनन को प्रभावी ढंग से रोकने में असमर्थ रही। ट्रिब्यूनल के आदेशों को लगातार तोड़ा जा रहा है।
Also Read: Uttarkashi Tunnel Rescue: लंबे इंतजार के बाद बाहर निकले 41 मजदूर, मौके पर मौजूद CM Dhami