नहीं थम रहा बाल विवाह का सिलसिला, देश ही नहीं विश्व में भी मंडरा रहा खतरा!
Child Marriage Report: बाल विवाह देश की सबसे गंभीर सम्सयाओं में से एक है। सरकार आये दिन प्रयास करती है इसे जड़ से खत्म करने की लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी बाल विवाह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। एक स्टडी के मुताबिक इन प्रयासों को नाकामयाब पाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में आज भी हर पांच लड़की में एक लड़की और हर छह लड़के में एक की शादी नाबालिग तरीके से होते आ रही है। पिछले पांच साल (2016 से 2021) की अवधि में बाल विवाह को लेकर हुई स्टडी में कहा गया है कि “कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बाल विवाह बेहद आम बात हो गई है।
छह राज्यों में लड़कियों के बाल विवाह बढ़े हैं
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इन राज्यों में मणिपुर, पंजाब, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। आठ राज्यों में लड़कों की शादियां नाबालिग हो रही हैं। इनमें छत्तीसगढ़, गोवा, मणिपुर और पंजाब शामिल हैं।
यूनाइटेड नेशंस चिल्ड्रंस फंड (UNICEF) का मानना है
”बाल विवाह ‘मानवाधिकारों का उल्लंघन’ है। ऐसा इसलिए क्योंकि18 साल से कम आयु वाली लड़कियों के साथ-साथ 21 साल से कम आयु में लड़कों की शादियों के कारण यह उनके विकास भी प्रभावित हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी का मानना है कि “बाल विवाह लैंगिक असमानता के कारण बढ़ रहे हैं। इससे लड़कियों पर असंगत तरीके से असर पड़ रहा है।”
साल 1993 से 2021 के दौरान
1993 से 2021 के बीच भारत का राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे हुआ था। बाल विवाह पर लैंसेट की इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने इसी सर्वे का डेटा इस्तेमाल किया। खास बात ये कि कुछ राज्यों में बाल विवाह बढ़ने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर बाल विवाह में गिरावट सामने आई है। शोध टीम में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्च अधिकारी और भारत सरकार से जुड़े अधिकारी भी शामिल रहे।
1993 में बाल विवाह की शिकार लड़कियों की संख्या 49 फीसदी थी। 28 साल के बाद यानी 2021 में यह 22 प्रतिशत हो चुकी है। राष्ट्रीय स्तर पर लड़कों का बाल विवाह भी काफी कम हुआ है। 2006 में सात फीसदी बालकों की शादियां हो रही थीं, जो 2021 में घटकर दो फीसदी रह गई है। हालांकि, शोध टीम ने इस बात पर चिंता जाहिर की और कहा, 2016 से 2021 के दौरान बाल विवाह को खत्म करने की प्रगति रूक गई है। 2006 से 2016 के दौरान बाल विवाह में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई।
स्टडी में बताया गया है
वैश्विक स्तर पर बाल विवाह में गिरावट दर्ज की गई है, लेकिन कोरोना महामारी के कारण इन प्रयासों में रुकावट आई है। बाल विवाह की कुरीति को जड़ से मिटाने में जितनी कामयाबी मिली है, उस पर पानी फिर सकता है। यूएन के मुताबिक दुनियाभर में 10 मिलियन (एक करोड़) बच्चियों पर बाल विवाह का खतरा मंडरा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र ने दीर्घकालिक विकास लक्ष्य (SDG) 5 को 2030 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इसके तहत लैंगिक समानता के साथ-साथ महिलाओं और लड़कियों की समानता का लक्ष्य भी हासिल किया जाना है। भारत में बाल विवाह की वर्तमान स्थिति को देखते हुए ये लक्ष्य काफी चुनौतीपूर्ण लग रहे हैं, लेकिन लैंगिक समानता के लिए बाल विवाह को जड़ से मिटाना काफी जरूरी है।
बच्चों के लिए हानिकारक प्रथाओं को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है। कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, जबरन कराई गई शादियों जैसी खराब प्रथाओं को जड़ से मिटाने के लिए किया गया है। भारत में बाल विवाह से इतर संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनियाभर में हर पांच में एक युवती की शादी बचपन में ही करा दी गई। वैश्विक स्तर पर यह करीब 19 फीसदी है।