Banke Vihari Holi: कुछ ऐसे मनाते हैं बिहारी जी के मंदिर में होली, भक्ति है प्रेम है और ईश्वर के प्रति प्रत्यक्ष होने का भाव
Banke Vihari Holi: होली का त्यौहार वैसे तो देशभर में मनाया जाता है लेकिन वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर की होली यानी ब्रज की होली अपने आप में प्रसिद्द है। बांके बिहारी मंदिर में होली का उत्सव 40 दिनों पहले ही शुरू हो जाता है। इसकी शुरुआत बसंत पंचमी (माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि) से होती है। इस दिन हवा में गुलाल उड़ा कर त्यौहार की शुरुआत की जाती है। लोग दूर-दूर से यहां बड़ी उत्साह और प्रेम के साथ होली मनाने आते हैं। एक महीने से अधिक चलने वाला होली का त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
ब्रज में कहते हैं होला
बता दें कि विश्व में रंगों से भरे इस त्यौहार को होली के नाम से जाना जाता है लेकिन ब्रज में होला कहते हैं। वैसै ब्रज में होली 40 दिनों तक चलती है। वहीं मुख्य उत्सव छह दिनों तक चलता है। होली समारोह का आयोजन फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शुरू होता है।
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क्यों मनाते हैं छोटी होली?
होली की शुरुआत होती है मथुरा के वृंदावन से यानी श्री बाँके बिहारी जी के मंदिर से। जहाँ भगवान श्री कृष्ण सबसे पहले अपने भक्तों के संग होली खेलते हैं। कान्हा ने मथुरा में जन्म लिया और वृंदावन में अपनी अदभुत लीलाएँ दिखाईं हैं इसलिए इन दोनो जगह होली का खास महत्व है। जनवरी के महीने से ही वृंदावन में होली का उत्साह देखने को मिलने लगता है। बसंत पंचमी को प्रभु को अबीर-गुलाल लगाया जाता है। श्री बाेके बिहारी जी के मंदिर की खासियत यही है कि यहां होली के एक दिन पहले होली खेली जाती है। उसके बाद अगले दिन पूरे नगर में होली मनाई जाती है। मान्यता के अनुसार सबसे पहले भगवान कृष्ण को रंग लगाया जाता है जिसे छोटी होली के रूप में जाना जाता है।
ऐसी होती है ब्रज की होली
बाकें बिहारी मंदिर में फाल्गुन माह में पड़ने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मंदिर के कपाट 9 बजे खुल जाते हैं। इस दिन बिहारी जी को सफेद रंग के वस्त्र पहनाए जाते हैं। सबसे पहले टेशू, गुलाब आदि के फूलों के बने रंगों को श्री बाँके बिहारी जी को लगाया जाता है फिर उन पर फूलों की बरसा की जाती है और अबीर गुलाल लगाए जाते हैं। उसके बाद बिहारी जी की पूजा अर्चना की जाती है। फिर लोगों के लिए मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं। भक्त जम कर कान्हा पर रंग, अबीर- गुलाल, फूल बरसाते हुए उनके संग होली खेलते हैं।
भक्ति, प्रेम और ईश्वर
इसी के साथ चारो ओर कान्हा के नाम की जयकार सुनाई देती है। ऐसा लगता है कि कान्हा जी सबके बीच आकर होली खेल रहे हों। लगभग 1:30 बजे ये उत्सव समाप्त होता है। ये होली बहुत खास है क्योंकि इसमें भक्ति है प्रेम है और ईश्वर के संग होने का एहसास भी।
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