Himachal में कांग्रेस की हार के बाद चर्चा में Operation Lotus, जानें कैसे गिरी सुक्खू सरकार?
Rajya Sabha Election: हिमाचल प्रदेश में बीजेपी ने कांग्रेस के खिलाफ राज्यसभा चुनाव में बड़ा दाव खेला है। राज्यसभा चुनाव में बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस हिमाचल में एक सीट तक जीत नहीं पाई। जिससे कांग्रेस के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कुर्सी अब खतरे में है। पहाड़ी राज्य में कांग्रेस की हार का कारण विधायकों के बगावत का पैटर्न ऑपरेशन ‘लोटस’ है। वहीं क्रॉस वोटिंग करने के बाद सभी विधायक पंचकूला चले गए हैं। गौर करने वाली बात यह है कि यह सब कुछ कांग्रेस की नाक के नीचे हुआ लेकिन कांग्रेस को इस बात की भनक तक नहीं लगी।
ऑब्जर्वर बना मुख्यमंत्री को शिमला भेजा
इन सब के बीच कांग्रेस की तरफ से एक खबर आ रही है कि पार्टी सरकार बचाने के लिए हिमाचल में मुख्यमंत्री बदलेगी। पार्टी ने इसके लिए हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंदर सिंह हुड्डा और कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार को ऑब्जर्वर बनाकर शिमला भेजा है। वहीं ऑब्जर्वर डीके शिवकुमार ने हिमाचल में सरकार को अस्थिर करने के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है। शिवकुमार ने कहा कि ”सत्ता में आने के लिए भारतीय जनता पार्टी यह साजिश रच रही है।”
सब ऑपरेशन लोटस का खेला
वरिष्ठ कांग्रेसी पवन बंसल ने हिमाचल के सियासी नाटक को ऑपरेशन लोटस कहा है। बंसल ने कहा कि ”चंडीगढ़ मेयर चुनाव में हार के बावजूद बीजेपी अपनी नापाक हरकत से बाज नहीं आ रही है।”
सुक्खू भांप नहीं पाए
हालांकि, कांग्रेस के भीतर हिमाचल के इस सियासी ड्रामे के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। कांग्रेस का कहना है कि विधायकों की बगावत का पैटर्न ऑपरेशन लोटस है, जिसे समय रहते सुक्खू समझ नहीं पाए।
मुझे भनक तक नहीं लगी
दरअसल सुक्खू का कहना है कि ”मुझे विधायकों क्रॉस वोटिंग का पता ही नहीं था कि कितने विधायक बगावत कर रहे हैं।” लेकिन देखा जाए सरकार का इंटेलिजेंस विभाग सुक्खू के पास है फिर उन्हें विधायकों की बगावत का पता कैसे नहीं चला? वहीं क्रॉस वोटिंग करने के बाद सभी विधायक पंचकूला चले गए, लेकिन हिमाचल पुलिस उन्हें नहीं ही रोक पाई। हिमाचल सरकार का गृह विभाग भी सुक्खू के पास ही है।
हम बराबरी में आकर चुनाव हारे
सीएम सुक्खू ने आगे कहा कि “बीजेपी के 25 विधायक थे। छह कांग्रेस के बागी विधायक और तीन निर्दलीय विधायकों को निष्कासित नहीं किया गया। बीजेपी के विधायक सदन में क्यों नहीं आए? अगर वो 25 भी होते तो भी कौन सा जीतते? हम बराबरी पर आकर चुनाव हारे हैं। कहीं न कहीं हमारी गलती रही है। हमारे कुछ लोग प्रलोभन में आए, अब उनको पश्चाताप हो रहा है। हमारी किसी से बात नहीं हुई है। एक विधायक (जिसे क्रॉस वोटिंग) का फोन आया था जो दुखी मन से कह रहा था कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है। अगर वो कल गलती नहीं करता तो हमारे राज्यसभा के सदस्य बन जाते।”
ऑपरेशन लोटस क्या है?
पहले साइलेंट तरीके से विधायक एकजुट होते हैं उसके बाद बड़े स्थर पर बगावत करते हैं। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी यह बड़ा अवसर राज्यसभा का चुनाव ही बना है। मतदान के बाद बगावत करने वाले विधायकों को तुरंत बीजेपी शासित राज्यों में ले जाया जाता है। विधायक तब तक उस राज्य में रहते हैं, जब तक कि सरकार गिर नहीं जाती। विधायकों के बगावत के बाद कानूनी टीम तक सक्रिय हो जाती है। सरकार गिराने में यह टीम भी अहम भूमिका निभाती है।
पहली बार कर्नाटक में ऑपरेश्न लोटस
सरकार गिराने का यह पैटर्न पहली बार कर्नाटक 2019 में देखा गया था। जुलाई 2019 में कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों ने साइलेंट तरीके से बगावत का बिगुल फूंका। उस समय विधायकों का नेतृत्व रमेश जरकिहोली कर रहे थे। सभी विधायक कर्नाटक छोड़ तुरंत गोवा चले गए और फिर वहां से महाराष्ट्र। इसके बाद सरकार गिरने तक विधायक वहीं रहे लेकिन फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट में केस जाने के बाद कुमारस्वामी सरकार ने विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराया, जिसमें उनकी हार हुई।
कैसे गिरी कमलनाथ सरकार?
2020 में मध्य प्रदेश में राज्यसभा की 3 सीटों के लिए आयोग ने चुनाव की घोषणा की थी। चुनाव घोषणा के कुछ दिन बाद ही कांग्रेस के 27 विधायक चोरी-छुपे कर्नाटक भाग गए। वे सभी विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के थे। कर्नाटक पहुंचने के बाद विधायकों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ गई।
वहीं कमलनाथ ने इसके बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया। कमलनाथ के इस्तीफा देते ही शिवराज सिंह चौहान ने सरकार बनाने का दावा पेश किया। राज्यपाल ने इस दावे को स्वींकर कर लिया और शिवराज को पद की शपथ दिलवा दी। इसी के तहत इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के 27 विधायकों की खाली सीट पर उपचुनाव कराए गए, जिसमें से 18 विधायकों ने जीत हासिल की।
एकनाथ शिंदे ने ऐसे मारी बाजी
जून 2022 में महाराष्ट्र में विधान परिषद के चुनाव प्रस्तावित थे। सभी पार्टियों ने चुनाव में अपने-अपने कैंडिडेट उतारे लेकिन मतदान के दौरान शिवसेना के विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी। क्रॉस वोटिंग के तुरंत बाद विधायक सूरत के लिए निकल गए।
विधायकों के सूरत जाते ही महाविकास अघाड़ी सरकार को ऑपरेशन लोटस का डर सताने लगा। सूरत से बागी विधायक गुवाहाटी पहुंच गए और शिवसेना पर ही दावा ठोक दिया। इसी बीच राजभवन ने एक्शन लेते हुए उद्धव ठाकरे को बहुमत साबित करने के लिए कहा।
उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, लेकिन ठाकरे को राहत नहीं मिली फिर उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा दे दिया। उद्धव के इस्तीफा देने के तुरंत बाद एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए।
एक सियासी ‘अपरेशन लोटस’
राजनैतिक तौर पर देखा जाए तो लोटस एक सियासी ऑपरेशन है, जिसे सत्ताधारी बीजेपी के साथ जोड़ा जाता है। सत्ताधारी बीजेपी किसी भी राज्य में विपक्षी पार्टियों के सरकार को अस्थिर करने की जो प्रक्रिया अपनाती है, उस प्रक्रिया को ऑपरेशन लोटस कहा जाता है।
ऑपरेशन लोटस का जिक्र
2008 में ऑपरेशन लोटस का जिक्र पहली बार कर्नाटक में हुआ था। उस वक्त कर्नाटक में बहुमत न होते हुए भी भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई थी और विपक्ष के 7 विधायकों को तोड़ दिया था। बता दें कि यह विधायक कांग्रेस और जेडीएस के थे।