‘एनिमल’ और ‘डंकी’ के स्टारडम पर भारी ‘Joram’, झकझोर कर रख देगा ट्रेलर
Joram: दिसम्बर में रणबीर कपूर, शाहरुख खान, विक्की कौशल और प्रभास की फिल्में एनिमल,डंकी, सैमबहादुर और सालार रिलीज हो रही हैं। हर तरफ इन दोनों फिल्मों का शोर है। सोशल मीडिया पर खूब चर्चा भी हो रही है, लेकिन इस बीच एक ऐसी फिल्म सिनेमाघरों में आ रही है, जो अपने दृश्यों से रोंगटे खड़े करती है। अपने शानदार अभिनय के लिए जाने जाने वाले एक्टर मनोज बाजपेयी की फिल्म जोरम (Joram) का ट्रेलर रिलीज हो गया है। अभिनेता मनोज बाजपेयी के आलावा मोहम्मद जीशान अय्यूब और स्मिता तांबे अभिनीत इस फिल्म में नजर आयेंगे। यह फिल्म 8 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी।
मनोज बाजपेयी की फिल्म जोरम अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों के बाद अब सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। इस फिल्म में मनोज ऐसे पिता के किरदार में हैं जो अपनी नवजात बेटी को बचाने के लिए भाग रहा है और पूरा सिस्टम उसके पीछे पड़ा हुआ है। इस थ्रिलर में मोहम्मद जीशान अय्यूब पुलिस अधिकारी के किरदार में हैं।
निर्देशक देवाशीष मखीजा (Devashish Makhija) ने एक ऐसी कहानी लेकर आ रहे है, जहां जीवित रहने के लिए बहिष्कृत व्यक्ति फाइट कर रहा है और यह निश्चितरूप से दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करेगी। इस फिल्म को लेकर अभिनेता मनोज बाजपेयी ने कहा है, “मैं जोरम का हिस्सा बनकर बेहद खुश हूं। फिल्म वास्तव में सभी पहलुओं में परिपक्व साबित हुई है। मुझ पर विश्वास करने के लिए ज़ी और देवाशीष का आभारी हूं।”
जातीय भेदभाव को दर्शाती फिल्म
जोरम 8 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। जातीय भेदभाव और आधुनिकता पर चोट करती यह फिल्म समाज में एक खास मैसेज भी देगी। वहीं बात अगर इस फिल्म के टाइटल को लेकर करें तो, जोरम एक तीन महीने की बच्ची है, जिसे एक पिता ने उसे साड़ी में लपेट रखा है और उसे अपनी छाती से चिपकाए भटक रहा है। पुलिस की गोलियों से खुद को बचाता हुआ भाग रहा है।
फिल्म के लेखक-निर्देशक देवाशीष मखीजा ने कहा
“यह सर्वाइवल थ्रिलर ड्रामा है, जिसमें कई तरह के संघर्ष के बाद भी एक व्यक्ति कैसे एक उम्मीद के साथ आगे बढ़कर जिंदगी जीने के लिए कई तरह की मुश्किलों का सामना करता है।”
क्या रोल है जीशान अय्यूब का
मोहम्मद जीशान अय्यूब फिल्म में रत्नाकर नाम के पुलिसकर्मी के किरदार में हैं, जिसको लेकर जीशान कहते हैं-“वह किसी उंची पोस्ट पर नहीं है और सामाजिक स्तर पर भी वो सबसे निचले पायदान पर है। यहां तक कि अपने सहकर्मियों के बीच भी वो काफी दबा हुआ और नीचा है। मैं शहर में पला-बढ़ा हूं। इस फिल्म के लिए पहली बार जंगलों और लोहे की खदानों में गया। इससे मुझे यह एहसास हुआ कि मैं रत्नाकर के किरदार से कितना जुड़ सकता हूं। साथ ही इससे हमें यह भी पता चलता है कि जिंदगी ने हमें जो भी दिया है, हमें उसकी कद्र करनी चाहिए।”
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