May 2, 2024

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केंद्र के इस अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष से मदद मांगते फिर रहे हैं अरविंद केजरीवाल, सुप्रीम कोर्ट का भी खटखटाया दरवाजा

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Arvind Kejriwal

दिल्ली में अफसरों के ट्रांसफर- पोस्टिंग का मुद्दा शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। एक बार फिर इस मुद्दे को लेकर दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार आमने सामने आ गई हैं। एक तरफ जहां केंद्र सरकार ने आध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया है वहीं दूसरी तरफ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

बता दें कि अभी कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार (Arvind Kejriwal) की ताकत को बढ़ाते हुए जमीन, पुलिस और कानून-व्यवस्था को छोड़कर बाकी सारे प्रशासनिक फैसले लेने के लिए दिल्ली सरकार को स्वतंत्रता प्राप्त की थी अधिकारियों और कर्मचारियों का ट्रांसफर- पोस्टिंग करने का भी अधिकार दिल्ली सरकार को दिया था और उपराज्यपाल को आदेश दिया था कि सिर्फ तीन मुद्दों को छोड़कर उन्हें दिल्ली सरकार के बाकी फैसले मानने पड़ेंगे।

दिल्ली सरकार के पक्ष में सुनाया था फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को अधिकारियों को नियंत्रित करने का अधिकार नहीं दिया गया तो जवाबदेही तय करने के सिद्धांत का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर अधिकारियों ने मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर दिया या उन्होंने मंत्रियों के निर्देश नहीं माने तो सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर असर पड़ेगा।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों (IAS) पर भी दिल्ली सरकार का नियंत्रण रहेगा, भले ही वे उसकी तरफ से नियुक्त न किए गए हों।’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाई केंद्र सरकार

अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलटने के लिए कमर कस ली है। केंद्र एक अध्यादेश लाई है ये अध्यादेश देश के राष्ट्रपति की तरफ से जारी होता है क्योंकि जब संसद सत्र नहीं चलता और जरुरत पड़ने पर इसी के तहत कानून बनाया जाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 में अध्यादेश का जिक्र है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति के पास अध्यादेश जारी करने का अधिकार है।

ये अध्यादेश संसद से पारित कानून जितने ही शक्तिशाली होते हैं। अध्यादेश के साथ एक शर्त जुड़ी होती है। अध्यादेश जारी होने के छह महीने के भीतर इसे संसद से पारित कराना जरूरी होता है। अध्यादेश के जरिए बनाए गए कानून को कभी भी वापस लिया जा सकता है। अध्यादेश के जरिए सरकार कोई भी ऐसा कानून नहीं बना सकती, जिससे लोगों के मूल अधिकार छीने जाएं। केंद्र की तरह ही राज्यों में राज्यपाल के आदेश से अध्यादेश जारी हो सकता है।

दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला सुनाया, वह केजरीवाल सरकार के पक्ष में था। ऐसे में इसे कानून में संशोधन करके या नया कानून बनाकर ही पलटा जाना संभव था। संसद अभी चल नहीं रही है, ऐसे में केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर इस कानून को पलट दिया। अब छह महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों में इस अध्यादेश को पारित कराना जरूरी है। इस अध्यादेश के जरिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। अब वापस अफसरों की ट्रासफर-पोस्टिंग का अधिकार केंद्र सरकार के पास आ गया है।

रामलीला मैदान में महारैली का आयोजन करेगी केजरीवाल सरकार

केंद्र सरकार के इस अध्यादेश लाने से पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जहां केजरीवाल सरकार (Arvind Kejriwal) खुशी मना रही थी वहीं इस खबर के आते ही दिल्ली सरकार के खेमे में खलबली मच गई। अब दिल्ली सरकार इस अध्यादेश से परेशान है और विपक्ष के नेताओं के दरवाजे खटखटा रहे हैं इसके साथ ही केजरीवाल सरकार ने इस अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसके लिए वो पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
नेताओं से लेकर आम जनता के बीच भी खुद की स्थिति बरकरार रखना चाहते हैं इसके लिए आम आदमी पार्टी 11 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान महारैली का आयोजन करने जा रही है। सुत्रों की माने तो केजरीवाल (Arvind Kejriwal) इस मंच पर विपक्षी दलों को एक साथ लाने की तैयारी में हैं। वो इस अध्यादेश के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा विपक्ष को इकट्ठा करने की कोशिश में लगे हुए हैं और इसके लिए ज्यादा मेहनत भी कर रहे हैं।
बिल पास कराने के क्या हैं समीकरण
Arvind Kejriwal
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए इस अध्यादेश को कानून के तौर पर आगे जारी रखने के लिए 6 महीने के अंदर इसे संसद से पारित कराना होगा जिसके लिए उसे बहुमत चाहिए होगा। सरकार को लोकसभा में इसे पारित कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि लोकसभा में उसके पास इस अध्यादेश को पारित कराने के लिए पर्याप्त संख्या है
वहीं सरकार को राज्यसभा में इसे पास कराने में कुछ परेशानियों का समाना करना पड़ सकता है क्योंकि वर्तमान में राज्यसभा में कुल सदस्यों की संख्या 245 है। दो मनोनित सदस्यों की सीट अभी खाली है। इसमें भाजपा के पास 93 सदस्य हैं अन्य सहयोगी दलों को मिलाकर भाजपा के कुल 110 सदस्य मौजूद हैं जबकि इस अध्यादेश को पारित कराने के लिए 120 सदस्यों का समर्थन चाहिए होगा।
भाजपा को इसे पारित कराने के लिए भाजपा को 10 सदस्यों का समर्थन और चाहिए होगा। अगर सरकार 2 मनोनीत सदस्यों को ले भी आती है तब भी उसको 8 सदस्यों की जरूरत होगी। इसी को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री लगातार विपक्षी दलों के नेताओं से समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं जिससे वो इस बिल को राज्यसभा मेें पारित होने से रोक सकें।

नितीश कुमार ने की थी केजरीवाल से मुलाक़ात

Arvind Kejriwal

 21 मई को नीतीश कुमार ने अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) से मुलाकात की थी। नीतीश ने केजरीवाल का समर्थन किया था। तब केजरीवाल ने कहा था कि अगर केंद्र सरकार मानसून सत्र में इस अध्यादेश का बिल लाती है और सभी विपक्षी दल इसका विरोध करते हैं तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा खत्म हो जाएगी। केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने नीतीश कुमार से कहा था कि वे विपक्षी दलों से हमारा समर्थन करने को कहें। मैं भी देशभर में विपक्षी दलों से मुलाकात कर समर्थन मांगूंगा।

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