बाबा नीम करोली से जुड़े अनसुने फैक्ट्स, कौन हैं वो माता जिन्हें मिलीं बाबा की शक्तियां?
Neem Karoli Baba: मशहूर नीम करोली बाबा देश ही नहीं विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। दिनों दिन उनके भक्तों और मानने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। नैनीताल के करीब स्थित कैंची धाम में नियमित तौर पर श्रृद्धालु बाबा के मंदिर में उनके दर्शन के लिए आते हैं और 50 साल पहले 11 सितंबर के दिन बाबा नीम करोली का निधन हो गया था। तो अब हम बात करेंगे कि उनकी मृत्यु कैसे हुई।
संत जो सादा जीवन जीते थे
दरअसल, बाबा नीम करोली ऐसे संत के तौर पर याद किए जाते हैं, जो सादा जीवन जीते थे और लोगों को अच्छे काम के साथ सादा जीवन जीने के लिए प्रेरित करते थे। उनके जीवन और कामों को लेकर ना जाने कितनी कहानियां हैं। उनसे जुड़े लोग बताते हैं कि बाबा ने उनके जीवन को कैसे बदल दिया या किस तरह बाबा ने उनको संकट में राह दिखाई।
भक्तों के दिव्य पुरुष
इतना ही नहीं, बाबा के भक्तों में एप्पल के फाउंडर स्टीव जॉब्स भी थे। जो महीने भर से ज्यादा उनके सानिध्य में रहे। इसी तरह विदेश की कई और शख्सियतें उन्हें दिव्य पुरुष मानती थीं। बाबा ने अपने प्राण वृंदावन में त्यागे, जहां उनका मंदिर है, यहां भी लोग दर्शन के लिए आते हैं।
अब मेरे जाने का समय आ गया
11 सितंबर 1973 की रात बाबा अपने वृंदावन स्थित आश्रम में थे। अचानक उनकी तबीयत खराब होने लगी। उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हें ऑक्सीजन मास्क लगाया लेकिन बाबा ने इसे लगाने से मना कर दिया। उन्होंने वहां मौजूद भक्तों से कहा अब मेरे जाने का समय आ गया है। उन्होंने तुलसी और गंगाजल को ग्रहण कर रात के करीब 1:15 पर अपना शरीर त्याग दिया। हालांकि उनकी मृत्यु का कारण मधुमेह कोमा बताया जाता है।
नीम करोली बाबा का जीवनी
आपको बता दें कि नीम करोली बाबा का जन्म करीब 1900 में उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में हुआ था। बताया जाता है कि वहीं 17 साल की उम्र में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने घर छोड़ अपना जीवन हनुमान भक्ति में लगा दिया। बाबा नीम करोली का कैंची धाम नैनीताल में भुवाली से 07 किमी की दूरी पर है। यहां हर साल 15 जून को वार्षिक समारोह मानाया जाता है। उस दिन बाबा के भक्तों की भारी भीड़ जुटती है।
11 वर्ष में विवाह हुआ, फिर त्याग दिया गृहस्थ जीवन
वही आपको जानकर हैरानी होगी कि नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था और 11 वर्ष की उम्र में ही बाबा का विवाह हो गया था। बार-बार गृहस्थ जीवन त्यागने की उन्होंने कोशिश की लेकिन परिवार के दबाव में अपने परिवार के साथ ही रहे।
फिर 1958 में बाबा ने अपना घर छोड़ दिया। पूरे उत्तर भारत में वो साधुओं की तरह घूमने लगे। तब वो लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा जैसे कई नामों से जाने जाते थे। उन्होंने गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या की तो वहां लोग उन्हें तलईया बाबा के नाम से पुकारने लगे।
लेकिन जिस नाम से वो आज दुनिया भर में प्रसिद्ध है, वो नाम उन्हें कैसे मिला आइए हम आपको बताते हैं…..
बाबा के अनेकों चमत्कार
एक बार बाबा फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे। जब टिकट चेकर आया तो उनके पास टिकट नहीं था। तब उन्हें अगले स्टेशन ‘नीब करोली’ में ट्रेन से उतार दिया गया। बाबा थोड़ी दूर पर अपना चिपटा धरती में गाड़कर बैठ गए। गार्ड ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई लेकिन ट्रेन एक इंच भी आगे नहीं हिली। फिर बाद में बाबा से माफी मांगने के बाद उन्हें सम्मान पूर्वक ट्रेन में बिठाया गया। उनके बैठते ही ट्रेन चल पड़ी। तभी से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया।
गंगाजल से बनाया देशी घी
एक बार की बात है कैंची धाम आश्रम में भंडारा होना था। बड़ी संख्या में लोग भंडारे का प्रसाद ग्रहण करने आए लेकिन इस दौरान घी कम पड़ गया। बाबा नीम करोली के अनुयायियों ने इस बात की जानकारी उन तक पहुंचाई। नीम करौली बाबा जी ने अपने भक्तों से कहा चिंता मत करो, पास बह रही गंगा नदी से दो कनस्तर जल भरकर ले आओ। भक्तों ने ऐसा ही किया वो गंगाजल भरकर ले आए और कढ़ाई में डाल दिया।
बाबा नीम करोली के चमत्कार से कढ़ाई में डाला जल देशी घी में बदल गया और उसमें गर्मा-गर्म पूड़िया तली जाने लगी। सभी भक्त ये देखकर हैरान रह गए। दूसरे दिन बाबा के आदेश पर दो कनस्तर देशी घी बाजार से लाकर गंगा मईया को वापस कर दिया गया और घी नदी में प्रवाहित कर दिया।
आपको बता दे कि उत्तराखंड के नैनीताल के पास कैंची धाम में बाबा नीम करौली 1961 में पहली बार यहां आए और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर यहां आश्रम बनाने का विचार किया था। बाबा नीम करौली ने इस आश्रम की स्थापना 1964 में की थी।
बाबा के भक्तों की लिस्ट
गौरतलब है कि किस्मत बदल देने वाले चमत्कारी बाबा नीम करौली महाराज के देश-दुनिया में आज भी लाखों-करोड़ों अनन्य भक्त हैं। फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग, एप्पल कंपनी के फाउंडर स्टीव जॉब्स, अभिनेत्री जूलिया राबर्ट, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मशहूर भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली, उनकी पत्नी अभिनेत्री अनुष्का शर्मा, अभिनेता और सांसद रवि किशन का नाम भी बाबा के अनन्य भक्तों में आता है।
बाबा के ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ की कहानी
आपको बता दें कि रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ नामक एक किताब लिखी, इसी में ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र है। बाबा हमेशा कंबल ही ओढ़ा करते थे। आज भी लोग जब उनके मंदिर जाते हैं तो उन्हें कंबल भेंट करते हैं। बाबा के चमत्कारी कंबल की यह घटना 1943 से जुड़ी है।
बाबा के कई भक्तों में एक बुजुर्ग दंपति भी थे, जोकि फतेहगढ़ में रहते थे. एक दिन बाबा अचानक बुजुर्ग दंपति के घर पर पहुंच गए. इसके बाद बाबा ने कहा कि वो रात में यहीं रुकेंगे। बाबा की बात सुनकर बुजुर्ग दंपति भक्त को बहुत खुशी हुई। लेकिन बुजुर्ग दंपति गरीब थे और वे सोचने लगे कि अगर बाबा रुके तो सत्कार और सेवा के लिए उनके पास कुछ नहीं है।
दंपति के पास उस समय जो कुछ भी पर्याप्त था, उन्होंने उस समय बाबा को दिया और उनका सत्कार किया। भोजन के बाद उन्होंने बाबा को सोने के लिए एक चारपाई और ओढ़ने के लिए कंबल दी, जिसे ओढ़कर बाबा सो गए। लेकिन जब बाबा कंबल ओढ़कर सो रहे थे तब ऐसे कराह रहे थे जैसे उन्हें कोई मार रहा है। दंपति सोचने लगे कि बाबा को आखिर क्या हो गया।
जैसे-तैसे रात बीती और सुबह हो गई। फिर बाबा ने सुबह कंबल लपेटकर बजुर्ग दंपति को दे दी और कहा कि इसे गंगा में प्रवाहित कर देना। लेकिन इसे खोलकर नहीं देखना वरना मुसीबत में फंस सकते हो। बाबा ने ये भी कहा कि, आप चिंता न करें ”आपका बेटा महीने भर के भीतर लौट आएगा। चादर लेकर जाते समय दंपति को ऐसा महसूस किया हुआ कि चादर में कुछ लोहे जैसा सामान है। लेकिन बाबा ने चादर खोलने से मना किया था।
इसलिए दंपति ने बिना उसे खोले वैसे ही नदी में प्रवाहित कर दिया। फिर बाबा के कहेानुसार एक महीने बाद बुजुर्ग दंपति का बेटा भी बर्मा फ्रंट से घर लौट आया। ये दंपति का इकलौता बेटा था, जोकि ब्रिटिश फौज में सैनिक था और दूसरे विश्वयुद्ध के समय बर्मा फ्रंट पर तैनात था। लेकिन बेटे ने अपने माता-पिता को ऐसी घटना के बारे में बताया, जिसे सुनकर वो हैरान रह गए।
बेटे ने कहा कि, ”लगभग महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के बीच घिर गया और रातभर गोलीबारी होती रही। इस युद्ध में उसके सारे साथी भी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया।” बेटे ने कहा कि ”मैं कैसे बच गया यह मुझे भी मालूम नहीं।”उसने कहा कि ”उसपर खूब गोलीबारी हुई लेकिन एक भी गोली उसे नहीं लगी। दरअसल यह वही रात थी, जिस रात नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) बुजुर्ग दंपति के घर आए और रुके थे।
यही कारण है कि अपनी किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ में रिचर्ड एलपर्ट ने इस कंबल को बुलेटप्रूफ कंबल कहा है। आज भी कैंची धाम स्थित मंदिर (neem karoli baba ashram kainchi dham) में बाबा के भक्त कंबल चढ़ाते हैं। बाबा खुद भी हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे।
पंतनगर में होती है हर मुराद पूरी
नीम करोली बाबा का समाधि स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में है। यह एक ऐसी जगह है जहां कोई भी मुराद लेकर जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता। यहां हनुमान जी की भव्य मूर्ति भी है और यहीं बाबा का समाधि स्थल भी है। बाद में यहां बाबा नीम करौली की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित की गयी है।
कहते हैं इस जगह के प्रताप और बाबा नीम करोली के वरदान से यहां आने वाला भक्त अपनी झोलियां भरकर ही जाता है। बता दे कि हर साल 15 जून को कैंची धाम के बड़े स्तर पर भंडारे का आयोजन होता है। कहते हैं 1964 में इसी दिन कैंची धाम में बाबा नीम करोली ने हनुमान मंदिर में प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी।
बाबा के परिवार की बात करे तो बाबा नीम करौली के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। बड़े बेटे अनेक सिंह परिवार के साथ भोपाल में रहते हैं, छोटे बेटे धर्म नारायण शर्मा वन विभाग में रेंजर के पद पर थे, जिनका कुछ समय पहले निधन हो गया।
ये तो थी बाबा नीम करौली के किस्से कहानियों और चमत्कारों की बातें, लेकिन क्या आपको पता है बाबा नीम करौली के इस दुनिया से चले जाने के बाद उन्होंने अपनी सिद्धियां किसे दी? नही, तो आइए जानते है।
‘मां, जहां भी तू रहेगी, वहीं मंगल हो जाएगा।’
नीमकरौली बाबा के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी शिष्या सिद्धि मां महाराज की उत्तराधिकारी बनीं। जिसके बाद उन्होंने कैंची धाम मंदिर परिसर की पूरी व्यवस्था खुद संभाली। उन्हें भक्त प्रेम से सिद्धि माई भी कहते थे। सिद्धि मां को भक्तों ने वहीं सम्मान दिया, जो वह नीम करौली महाराज के प्रति रखते थे। बताया जाता है कि ब्रह्मलीन होने से पहले बाबा ने सिद्धि मां के लिए एक पंक्ति लिखी लिखी थी और वह थी, ‘मां, जहां भी तू रहेगी, वहीं मंगल हो जाएगा।’
कि 1940 के आसपास नैनीताल में पहली बार नीम करौली महाराज का आगमन हुआ था। तब वह सिद्धि मां को कात्यायनी देवी कहकर बुलाते थे। बाबा के भक्तों का मानना है कि 1973 में ब्रह्मलीन होने से पहले नीम करौली महाराज ने अपनी सारी अलौकिक शक्तियों को सिद्धि मां को सौंप दिया था।
बाबा की शिष्या व उत्तराधिकारी रहीं सिद्धि मां हर सप्ताह शनिवार और मंगलवार को कैंची धाम में भक्तों को दर्शन देती थीं। कहा जाता था कि उनके दर्शन मात्र से भक्तों की सभी परेशानियां दूर हो जाती थीं।
आश्रम में है सबसे बड़ा आश्रम
बता दें कि नीम करौली महाराज के देश-दुनिया में कुल 108 आश्रम हैं। इनमें सबसे बड़ा कैंची धाम और अमेरिका के न्यू मैक्सिको सिटी में स्थित टाउस आश्रम है। 28 दिसम्बर 2017 को करीब 92 साल की उम्र में नैनीताल के मल्लीताल स्थित प्रसादा भवन के आवास तीर्थम में सिद्धि मां का निधन हो गया था।
मां के ब्रह्मलीन होने के बाद कैंची धाम में उनकी भी भव्य प्रतिमा स्थापित कर अलग पूजा कक्ष बनाया गया है। 28 दिसंबर को हर साल उनकी पुण्यतिथि पर कैंची धाम में विशाल भंडारा होता है।