कौन था पहला कांवडिया जिसने किया शिव का जलाभिषेक? जानिए इसके पीछे की रोचक कहानी

Sawan Month 2022: सावन माह में शिवभक्त कांवड़ लेकर शिवजी के मंदिर में जाकर गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं। सावन का महीना आते ही शिवभक्त भक्ति के रस में झूमने लगते हैं। सावन का पूरा महीना (Sawan Month 2022) शिवभक्तों के लिए एक त्योहार से कम नहीं है। इस पावन त्योहार में पूरे उत्तर भारत और अन्य राज्यों से कावड़िए शिवजी के पवित्र धामों में जाते हैं तथा वहां से गंगाजल लाकर शिवजी का जलाभिषेक करते हैं।
क्या होते है कांवड़ यात्रा के नियम
Sawan Month 2022: कावड़ियों को नंगे पैर बहुत दूर चलकर गंगा जल लाना होता है तथा शर्त यह होती है कि कावड़िए शिव कावड़ को जमीन में नहीं रख सकते। इस प्रकार शिव भक्त अनेक कठिनाइयों का सामना करके गंगाजल लाते हैं और उससे शिवजी का अभिषेक करते हैं।
पहला कांवडिया कौन था
Sawan Month 2022: क्या कभी किसी ने यह सोचा है कि आखिर कौन पहला व्यक्ति था, जो सबसे पहला कावड़िया था और जिसने सबसे पहले भगवान शिव का जलाभिषेक कर उनकी कृपा प्राप्त की थी। इस परंपरा का आरंभ कब हुआ ? इसके पीछे पुराणों में यह कथा मिलती है।
पौराणिक कथा
Sawan Month 2022: एक बार ऋषि जमदग्नि ने सहस्त्रबाहु की सेना का बहुत अच्छी तरह से आदर सत्कार किया, उनकी सेवा में किसी भी तरह की कमी नहीं आने दी। सहस्त्रबाहु ऋषि के आदर सत्कार से बहुत ही प्रसन्न हुआ परन्तु उसे यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि आखिर एक साधारण एवं गरीब ऋषि उसके और उसकी सेना के लिए इतना सारा खाना कैसे जुटा पाया ?
कामधेनु नामक दिव्य गाय का कमाल
सहस्त्रबाहु को जब अपने सैनिकों के माध्यम से यह पता चला कि ऋषि जमदग्नि के पास एक कामधेनु नाम की दिव्य गाय है। जिससे कुछ भी मांगो वह सब कुछ प्रदान करती है। जब राजा को यह ज्ञात हुआ कि इसी कामधेनु गाय के कारण ऋषि जमदग्नि संसाधन जुटाने में कामयाब हो पाए तो उस गाय को प्राप्त करने के लिए सहस्त्रबाहु के मन में लालच उत्पन्न हुआ।
उसने ऋषि से कामधेनु गाय मांगी परन्तु ऋषि जमदग्नि ने कामधेनु गाय को देने से मना कर दिया। इस पर सहस्त्रबाहु अत्यंत क्रोधित हो गया तथा उसने कामधेनु गाय को प्राप्त करने के लिए ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी।
जब परशुरामजी को पता लगी यह बात
जब यह खबर परशुराम को मिली कि सहस्त्रबाहु ने उनके पिता की हत्या कर दी है तथा वह कामधेनु गाय को अपने साथ ले गया है तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। उन्होंने सहस्त्रबाहु की सभी भुजाओं को काटकर उसकी हत्या कर डाली। बाद में परशुराम ने अपने तपस्या के प्रभाव से अपने पिता जमदग्नि को पुनः जीवन दान दिया।
जब ऋषि को यह बात पता चली कि परशुराम ने सहस्त्रबाहु की हत्या कर दी तो उन्होंने इसके पश्चाताप के लिए परशुरामजी से भगवान शिव का जलाभिषेक करने को कहा। तब परशुराम अपने पिता की आज्ञा से अनेकों मील दूर चलकर गंगाजल लेकर आए तथा आश्रम के पास ही शिवलिंग की स्थापना की और महाभिषेक किया व उनकी स्तुति की। जिस क्षेत्र में परशुराम ने शिवलिंग स्थापित किया था उस क्षेत्र का प्रमाण आज भी मौजूद है। वह क्षेत्र उत्तर प्रदेश में आता है तथा वह महादेव के नाम से प्रसिद्ध है।
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