क्यों एक डॉलर, एक रुपये के बराबर नहीं ? रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर, क्या होगा इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर

डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया क्यों गिर रहा है?
Rupee Falling : भारतीय रुपये की हालत कई दिनों से बेहद खराब हो गई है. बता दें कि रूपया, डॉलर के मुकाबले 80.05 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि रूपये गिरने से हम पर यानी आम जनता पर इसका क्या असर होगा.?
अमेरिका के मुकाबले 7 पैसे गिरा रूपया
अमेरिकी डॉलर, इस वर्ष अब तक भारतीय रुपये के मुकाबले 7.5% ऊपर है यानी भारतीय रुपया (Rupee Falling), अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 7 पैसे गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर 80.05 पर आ गया है. बता दें कि डॉलर इंडेक्स, सोमवार को एक सप्ताह के निचले स्तर पर फिसलकर 107.338 पर पहुंच गया. हालांकि पिछले हफ्ते डॉलर इंडेक्स बढ़कर 109.2 हो गया था, जो कि सितंबर 2022 के बाद सबसे अधिक है.
रुपया गिरने का क्या है मतलब
विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अमेरिका मुद्रा (डॉलर) के मुकाबले रुपये (Rupee Falling) में गिरावट का मतलब है, कि ‘भारतीय करंसी कमजोर हो रही है’. जिस वजह से अब हमें अमेरिका से या फिर किसी भी देश से आयात में चुकाने वाली राशि अधिक देनी होगी, क्योंकि विदेशों में भुगतान रुपये में नहीं, बल्कि डॉलर में किया जाता है. जिस कारण अब हमें अधिक पैसे खर्च करने होंगे.
विदेशी निवेशक क्यों निकाल रहे हैं अपने पैसे?
मौजूदा समय में, अमेरिका में महंगाई दर 40 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है और तेजी से बढ़ रही है. मई महीने में यह 8.6 फीसदी दर्ज की गई थी. इसके अलावा भारत में भी महंगाई काफी अधिक हो चुकी है. गौरतलब है कि जिस तरह भारत के रिजर्व बैंक ने महंगाई को काबू करने के लिए पिछले करीब डेढ़ महीनों में दो बार 90 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है, वैसे ही अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक भी बढ़ोतरी करने पर विचार कर रहा है.
ऐसे में विदेशी निवेशक, शेयर बाजार से अपना पैसा निकाल कर अमेरिका में लगा सकते हैं, जिससे उन्हें अधिक मुनाफा हो सकें. भारत के पूंजी बाजार में विदेशी निवेशक इसीलिए पैसे लगाते हैं, क्योंकि वहां की तुलना में यहां रिटर्न अधिक मिलते हैं. हालांकि विदेशी निवेशक दुनिया भर के बाजारों में पैसे लगाते हैं और जहां ये लोग पैसे लगाते हैं, वहां बाजार भागता है.
रुपये में गिरावट के ये हैं बड़े कारण
मिलवुड केन इंटरनेशनल के संस्थापक और सीईओ निश भट्ट के अनुसार, कमजोर होते रुपये (Rupee Falling) के कई कारण हैं-
जैसे कि अमेरिका में आर्थिक मंदी, फेड की बड़ी हुई दरें और रूस-यूक्रेन के बीच भू-राजनीतिक तनाव. इसके अलावा तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण भी भारतीय मुद्रा को अब तक के सबसे निचले स्तर पर धकेल दिया है.
बता दें कि यूएस फेड की दरों में आक्रामक रूप से बढ़ोतरी ने डॉलर को मजबूत किया है. जिसको देखते हुए एफपीआई ने 2022 (YTD) में भारतीय बाजार से रिकॉर्ड 2.25 लाख करोड़ रुपये निकाले हैं.
रूपये का गिरना तय था.?
जानकारों के अनुसार, रुपये का गिरना अपेक्षित (expected) तर्ज पर है. बता दें कि 2014 के बाद से इसमें लगभग 25% (Rupee Falling) की गिरावट आई है. गौरतलब है कि डॉलर के मजबूत होने से अन्य मुद्राएं कमजोर होती हैं, जो कि वर्ष 2020 और 2013 में देखा भी गया था. साल 2013 और 2020 में जीबीपी (GBP), यूरो और येन जैसी कुछ प्रमुख मुद्राओं में रुपये से अधिक गिरावट आई थी.
बहरहाल आज तक डॉलर कभी इतना महंगा नहीं हुआ था. हालांकि मुद्रा का दाम हर रोज घटता-बढ़ता रहता है. लेकिन इस बार ये रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है. कुछ ही वक्त में डॉलर की जरूरत बढ़ती चली गई, जिस कारण दुनिया में हमारे सामान या सर्विस की मांग नहीं बढी.
आम जनता पर इस तरह पड़ेगा असर
डॉलर के महंगे होने से, सरकार का तेल और दाल पर खर्च अधिक होगा. जिसका असर इनकी कीमतों पर होगा. बहरहाल इनके महंगा होने से आम जनता के किचन का बजट बिगड़ सकता है. इसके अलावा विदेश में पढ़ाई, यात्रा, खाद्य तेल, कच्चा तेल, कंप्यूटर, लैपटॉप, सोना, दवा, रसायन, उर्वरक और भारी मशीन, जिन सभी चीजों का आयात किया जाता है, वह महंगे हो जाएंगे.
बता दें कि भारत, 80 फीसद कच्चा तेल आयात करता है. और डॉलर महंगे होने से कच्चा तेल महंगा होगा, जिस कारण पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ेगी तथा माल ढुलाई महंगी होगी. ऐसे में रुपये के कमजोर (Rupee Falling) होने से रसोई से लेकर घर में उपयोग होने वाले रोजमर्रा के सामान के दाम बढ़ सकते हैं. साथ ही पेट्रोल-डीजल महंगा होने से किराया भी बढ़ सकता है जिससे आना-जाना महंगा हो जाएगा.
विदेश में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों को रहने-खाने से लेकर फीस सब डॉलर में चुकानी होती है, ऐसे में रुपये के कमजोर (Rupee Falling) होने से उन छात्रों को पहले के मुकाबले ज्यादा पैसा खर्च करना होगा. उनके परिहन की लागत भी बढ़ जाएगी व विदेश यात्रा भी महंगी हो जाएंगी.
इलेक्ट्रिक सामान का आयात होगा महंगा
भारत, जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ-साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत कई दवाओं का भारी मात्रा में आयात विदेशों से करता है. भारत में उपयोग होने वाले अधिकतर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया के शहरों से होता है, जिसमें अधिकतर डॉलर का उपयोग होता है. उल्लेखनीय है कि अगर रुपये में इसी तरह गिरावट जारी रही तो देश में आयात महंगा हो जाएगा.
विदेशों से आयात होने के कारण इनकी कीमतों में इजाफा तय है, जिसकी बजह से हमारा खर्चा अधिक होगा. इसके अलावा भारत, खाद्य तेल का 60 फीसदी आयात करता है. ऐसे में यदि रुपया कमजोर (Rupee Falling) होता है तो खाद्य तेलों के दाम घरेलू बाजार में बढ़ सकते हैं. हालांकि हालही में सरकार ने खाद्य तेलों को सस्ता करने के लिए इसपर लगने वाला आयात शुल्क खत्म कर दिया था.
रोजगार के अवसर में आएगी कमी
बता दें कि भारतीय कंपनियां विदेश से सस्ती दरों पर भारी मात्रा में कर्ज जुटाती हैं. लेकिन अब रूपये में गिरावट (Rupee Falling) आने से भारतीय कंपनियों के लिए विदेश से कर्ज जुटाना महंगा पड़ेगा, जिस कारण उनकी लागत बढ़ेगी, और लागत में इजाफा होने से कारोबार के विस्तार की योजनाएं टल सकती हैं. जिससे देश में रोजगार के अवसर घट जाएंगे.
मतलब अभी और गिरेगा रुपया .?
हालही में रुपये में आई तगड़ी गिरावट के कारण रूपया न्यूनतम स्तर तक पहुंच गया हैं. हालांकि गिरावट (Rupee Falling) के कुछ दिन बाद रुपये में मामूली मजबूती आई थी और वह सिर्फ 1 पैसा मजबूत हुआ. लेकिन अभी तक अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों को लेकर कोई घोषणा नहीं की है.
जिसके मद्देनजर, जानकारों का कहना है–
28 सालों में ये सबसे बड़ी बढ़ोतरी हुई है. और अगर आगे भी ऐसा रहा तो अवश्य ही रुपये में और गिरावट आएगी, क्योंकि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से और अधिक पैसा बाहर निकालेंगे.