जानिए, वासुदेव द्वादशी का इतिहास, महत्व, उत्सव और तिथि

Vasudev Dwadashi: हिंदू कैलेंडर के अनुसार जुलाई का महीना कई महत्वपूर्ण दिनों से मिलकर बनता है। यह समृद्धि, प्रसव या पारिवारिक मामलों जैसे कारणों से एक पवित्र महीना माना जाता है। वासुदेव द्वादशी (Vasudev Dwadashi) आषाढ़ माह में, देवशयनी एकादशी के अगले दिन मनाई जाती है। इस दिन, देवी महालक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु के रूप में कृष्ण की पूजा की जाती है। वासुदेव द्वादशी को वामन द्वादशी के रूप में भी मनाया जाता है।
इतिहास
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव ऋषि नारद ने भगवान कृष्ण के माता-पिता से इस दिन सख्त उपवास रखने को कहा था। व्रत का पालन करने के बाद, वासुदेव और देवकी को कृष्ण नाम के एक बच्चे का आशीर्वाद मिला। चातुर्मास व्रत की शुरुआत वासुदेव द्वादशी (Vasudev Dwadashi) उत्सव से भी होती है।
महत्व
यह भगवान कृष्ण की पूजा के लिए महत्वपूर्ण है। चूंकि यह चतुर मास (चार पवित्र मानसून महीने) की शुरुआत का प्रतीक है। कई लाभ और आत्मा की मुक्ति के लिए भक्त अगले चार महीनों तक कठोर तपस्या करते हैं। इस दिन ब्राह्मणों को दान देना बहुत ही शुभ माना जाता है।
उत्सव
वासुदेव द्वादशी (Vasudev Dwadashi) के अवसर पर भक्त मंदिर जाते हैं और भगवान कृष्ण को समर्पित भजनों का जाप करते हैं। वे गुड़, गेहूं की चपाती और हरी घास जैसे भोजन देते हैं। गायों को भोजन कराना वासुदेव द्वादशी व्रत का एक महत्वपूर्ण पहलू मना जाता है।
पौराणिक विधि
- भक्त सुबह पवित्र स्नान करते हैं।
- वे दिन भर उपवास रखते हैं और मंदिर जाते हैं।
- वे भगवान विष्णु को फूल, अगरबत्ती और मोर पंखे चढ़ाते हैं।
- वे विष्णु सहस्रनाम और भगवान विष्णु के अन्य मंत्रों का जाप करते हैं।
यह भी पढ़े:- जानिए कौन होते है पितृ, क्या होता है इनका महत्व, पितृ लोक का क्या अर्थ है?