April 23, 2024

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जानिए, महादेव के भक्त सावन माह में उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए कितनी मेहनत करते हैं

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Kanwar Yatra: सावन माह की शुरुआत हो चुकी है और कांवड़ यात्रा भी शुरू हो चुकी है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए केसरिया वस्त्रों में कांवड़ियों के जत्थे दूर-दूर से गंगाजल भरकर शिवालयों की ओर जाने लगे हैं। अपनी-अपनी कांवड़ को आकर्षित बनाने के लिए शिव भक्त हर प्रयास करते हैं, लेकिन शिव भक्तों के लिए ये राह इतनी आसान नहीं होती।

गर्मी, बारिश और सड़क पर बिछे पत्थर भी उनकी आस्था में आड़े नहीं आते। यह यात्रा (Kanwar Yatra) जितनी मुश्किल है, इसके नियम भी उतने ही सख्त हैं। मंदिरों के पुजारियों की मानें तो परशुराम ने पैदल चलकर कांवड़ यात्रा की थी। हालांकि, समय बदला और इसमें कई तरह के कांवड़ यात्रा और नियम बनाए गए।

डाक कांवड़ होती है मुश्किल

Kanwar Yatra

Kanwar Yatra: डाक कांवड़ को एक निश्चित समय में ही पूरा किया जाता है। यह अमूमन 24 घंटे में पूरी कर ली जाती है। कांवड़ लाने का संकल्प लेकर 10 या इससे अधिक युवाओं की टोली वाहनों में सवार होकर गंगा के घाट पर जाकर जल उठाते हैं। डाक कांवड़ जाने वाली टोली में शामिल एक या दो सदस्य लगातार जल हाथ में लेकर दौड़ते रहते हैं। एक सदस्य के थक जाने पर दूसरा सदस्य जल लेकर दौड़ता है। ऐसे में दौड़ते हुए जाना बहुत मुश्किल होता है।

झांकी कांवड़ का आनंद लेते हैं भक्त

Kanwar Yatra

कुछ कांवड़िए झांकी लगाकर कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) करते हैं। शिव भक्त 70 से 250 किलो तक की कांवड़ लाते हैं। झांकियों को लाइटों और आर्टिफिशियल फूलों से सजाया जाता है। झांकियों में शिवलिंग बनाया जाता है और बच्चों को शिव बनाकर झांकी तैयार की जाती है। रोड पर जब शिव भक्त झांकी कांवड़ लेकर गुजरते है तो इनको देखने के लिए भीड़ भी जुट जाती है।

शिवालय तक दंडवत कांवड़ यात्रा

Kanwar Yatra

शिव भक्त मनोकामना पूर्ण होने के उद्देश्य को लेकर दंडवत कांवड़ भी लाते हैं। इसे शिवालय से 3 से 15 किलोमीटर तक की दंडवत कांवड़ बोलते हैं। शिव भक्त दंडवत ही शिवालय तक जाते हैं और गंगा जल शिवलिंग पर अर्पित करते हैं। दंडवत कांवड़ को लाने के दौरान रोड के पत्थर शिव भक्त को चुभते है और कपड़े भी गंदे हो जाते है।

जानिए कांवड़ यात्रा का इतिहास

Kanwar Yatra

कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) को लेकर कई प्रचलित मान्यताएं हैं लेकिन बताया जाता है कि भगवान परशुराम बहुत बड़े शिव भक्त थे और वही सबसे पहले कांवड़ यात्रा के लिए निकले थे। परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लिया और यूपी के बागपत जिले के पास स्थित पुरा महादेव शिवलिंग का अभिषेक किया था। इसके साथ ही कांवड़ यात्रा प्रारंभ हो गई। कुछ मान्यताओं में भगवान राम को भी पहला कांवड़िया कहा जाता है।

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